घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग कथा हिंदी में Grishneshwar Jyotirlinga History and Story in Hindi

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यह ज्योतिर्लिंग राजस्थान के शिवर नामक स्थान पर स्थित है, शिव महापुराण के अनुसार यह अंतिम ज्योतिर्लिंग है। इस ज्योतिर्लिंग कथा हमें कोटिरुद्रसंहिता में मिलता है। यह कथा इस प्रकार है कि दक्षिण में स्थित देवगिरी पर्वत के निकट भारद्वाज गोत्र में जन्मे सुधर्मा नामक ब्राह्मण अपनी पत्नी सुदेहा के साथ रहा करता था। सुधर्मा बहुत ही धार्मिक था, वह प्रतिदिन भगवान शिव की पूजा अर्चना करते थे। वे दोनों बहुत ही सुखी थे परंतु उनकी कोई संतान नहीं थी। जिसकी वजह से उनके पड़ोसी उन्हें ताना देते रहते थे। इसीलिए वह एक दिन अत्यंत दुखी होकर अपने पति से बोली हे नाथ सृष्टि का यही नियम है, की जो भी वंश चल रहा है आगे बढ़ाने का दायित्व संतान पर होता है। और हमारे तो नहीं है। कृपा करके अपने वंश को होने से बचाइए। अतः आप मेरी बहन घुश्मा शिव विवाह कर लीजिए। सुधर्मा ने इंकार करते हुए कहा कि इस विवाह से से ज्यादा दुख तुम्हें ही होगा। परंतु अपनी जीत से शुदेहा ने सुधर्मा का विवाह अपनी बहन से करवा दिया। घुश्मा अपनी बड़ी बहन के कहने पर रोज 101 शिवलिंग बनाकर विधि पूर्वक उनकी पूजा करती थी। और फिर उसका विसर्जन निकट के तालाब में कर दिया करती थी। भगवान शिव की कृपा से घुश्मा के एक गुणवान पुत्र पैदा हुआ। घुश्मा का सम्मान बढ़ाने लगा। और सुदेहा के मन में अपने बहन के प्रति ईर्ष्या उत्पन्न होने लगी। समय आने पर उस पुत्र का विवाह हो गया। पुत्रवधू के घर आ जाने पर सुदेहा और ईर्ष्या करने लगी। एक रात सोते हुए को सुदेहा ने चाकू से मार डाला। और उसके अंग को काट कर तालाब में डाल दिया, जहां उसकी बहन पार्थिव लिंग को विसर्जित कर दी थी। सुबह उठकर सुधर्मा और घुश्मा भगवान शिव की आराधना में लग गए। इधर जब पुत्रवधू ने बिस्तर पर खून देखा, तो वह रोने लगी। और उसने सबको यह बात बताई। परंतु पूजा में लीन पति पत्नी विचलित नहीं हुए। जबकि सुदेहा दिखावे के लिए विलाप करने लगी। पूजन के पश्चात घुश्मा पार्थिव लिंग का विसर्जन करने के लिए उसी तालाब पे गई। तब उसने अपने पुत्र को खड़ा देखा। वह जानती थी यह सब भगवान की लीला है। वह ना खुश हुई और ना दुखी। फिर एक ज्योति उसकी सामने प्रकट हुई। उसमें से भगवान शिव प्रकट हुए । उन्होंने घुश्मा को शुदेहा का अपराध बताया और उसे मृत्युदंड देने के लिए वहां से प्रस्थान करने लगे। परंतु घुश्मा ने उन्हें अपनी बहन को क्षमा कर देने के लिए कहा। इस पर भगवान शिव बहुत प्रसन्न हुए। और उसे वर मांगने के लिए कहा तब घुश्मा ने कहा अगर आप मेरी भक्ति सेे प्रसन्न है। तो सदा के लिए यहा वास करे। और मेरे नाम से ही आपकी ख्याति हो। भगवान शिव घुश्मेश्वर नाम से प्रसिद्ध हुए।
                                                              ॐ हर हर महादेव जय महाकाल ॐ
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