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बैजनाथ ज्योतिर्लिंग का वर्णन शिवपुराण के कोटिरुद्रसंहिता में मिलता है, इस ज्योतिर्लिंग के बारे में बहुत ही भ्रांतियां हैं कुछ लोगों इस ज्योतिर्लिंग की स्थिति को देवगढ़ झारखंड बताते हैं वहीं पर कुछ लोग इस ज्योतिर्लिंग का स्थान परली महाराष्ट्र बताते हैं और कुछ लोग इस ज्योतिर्लिंग की स्थिति बैजनाथ हिमाचल प्रदेश मानते हैं द्वादश ज्योतिर्लिंग के अनुसार यह ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के परली में स्थित है और शिव महापुराण के अनुसार यह ज्योतिर्लिंग चिता भूमि स्थित बताई गई है, स्थान को लेकर विवाद है लेकिन सबकी कथा एक समान है एक बार दशानन कैलाश पर्वत पर शिव की आराधना कर रहा था कई वर्षों तक तक करने के बाद भी जब भगवान शिव प्रसन्न नहीं हुए उसे में अपना बारी बारी से एक एक करके सिर काटता हुआ अग्निकुंड में समर्पित कर रहा था । ऐसा करते हुए अपने अपने कुल 9 सर काट डाले कुंड में समर्पित कर दिया। और जैसे ही वह अपना आखरी सर काटने जा रहा था। तब महादेव उसके सामने प्रकट हुए और रावण के सारे सर पहले जैसे करके उसे वर मांगने को कहा रावण ने सबसे बलशाली होने का वर मांगा। भगवान शिव अपने भक्तों से बहुत करते हैं उसे सबसे बलशाली होने का वर दे दिया। फिर इसके बाद रावण भगवान के सम्मुख हाथ जोड़कर खड़ा होकर बोला आप मेरे साथ लंका चलिए रावण के ऐसा कहने पर शंकर सोचने लगे और कुछ देर बाद बोले हे रावण तुम मेरे इस लिंग को लंका ले जाओ परंतु यह याद रखना अगर तुमने इस लिंग को कहीं पर भी रास्ते में रखा तो यह वही पर स्थापित हो जाएगा रावण बहुत प्रसन्न हुआ और उस शिवलिंग को लंका की तरफ ले कर चला गया भगवान शिव के ऐसा करने पर सारे देवगढ़ यह सोचकर भयभीत हो गए अगर भगवान शिव लंका में विराजमान हो जाएंगे रावण को करना बहुत ही मुश्किल हो जाएगा इसीलिए वह ब्रह्मा के पास गया और उनसे सुझाव मांगा तो उन्होंने कहा कि अगर किसी कारण रावण इस लिंग को रास्ते में ही कहीं रख देता है तो हमारा काम बन जाएगा और इस काम के लिए वरुण देव को चुना गया वरुण रावण के शरीर में घुस गए जिससे उसे बहुत तीव्र लघुशंका लगी रावण के बहुत कोशिश करने के बाद भी वह इसे रोक नहीं पा रहा था फिर वह किसी ऐसे को खोजने लगा जैसे वह शिवलिंग देकर लघुशंका कर सके उसी समय उसे वहां एक ग्वाला दिखा इसके बाद रावण ने उससे आग्रह किया कि अगर वह कुछ समय के लिए शिवलिंग को पकड़े रहे तो मैं लघुशंका कर लूं लघुशंका करते करते रावण को बहुत समय बीत गया और इधर शिवलिंग के भार से ग्वाला थक गया था जब उसे यह सहा नहीं गया तो उसने शिवलिंग को भूमि पर रख दिया फिर जैसा भगवान शिव ने कहा था वैसा ही हुआ वह शिवलिंग वहीं पर स्थापित हो गया। रावण भगवान की लीला जानकर वहीं पर भोलेनाथ की स्तुति करने लगा। यह देख कर वहां पर सभी देवता भगवान भोलेनाथ के के लिए आ गए शिवलिंग का पूजा किया और उसका नाम वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग रखा। कुछ समय तपस्या के बाद रावण प्रसन्न मन से लंका चला गया तो फिर सारे देवता चिंतित होकर सोचने लगे के की भगवान शिव के दिए हुए वरदान से ना जाने यह करेगा यह जानने के लिए देवताओं ने नारद जी को पास भेजा नारद जी लंका गए और उन्होंने रावण को सुझाव दिया एक बार कैलाश पर्वत उठा कर देखो तब पता चलेगा शिव जी का दिया हुआ वरदान कहां तक सफल हुआ है रावण को यह बात सही लगी और उसने जाकर कैलाश को उठा लिया इससे क्रोधित होकर भगवान शिव ने यह श्राप दे दिया अपनी शक्ति पर घमंड करने वाले दुष्ट रावण अंत करने वाला पुरुष शीघ्र ही अवतरित होगा और तुम्हे मारने वाला एक सामान्य मनुष्य होगा।
ॐ हर हर महादेव जय महाकाल ॐ
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