मोक्षदा एकादशी व्रत कथा व पूजा विधि | Mokshada Ekadashi Vrat Katha | Mokshada Ekadashi Vrat Katha in Hindi | Mokshada Ekadashi Vrat Vidhi, मोक्षदा एकादशी व्रत कथा, मोक्षदा एकादशी व्रत विधि
मोक्षदा एकादशी व्रत तिथि :-19 दिसंबर 2018 बुधवार
मोक्षदा एकादशी व्रत कथा व पूजा विधि:-महाराज युधिष्ठिर बोले हे जनार्दन आपको नमस्कार है हे देवेश मनुष्यों के कल्याण के लिए मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी का नाम महात्मा एवं विधि बताइए। उस दिन किसकी आराधना होती है, युधिष्ठिर के ऐसे वचन सुनकर भगवान श्री कृष्ण बोले पांडव नंदन तुम धन्य हो जो प्रकार लोकोपचार प्रश्न किया है अच्छा ध्यान से सुनो यह एकादशी मनुष्य के सभी पापों को नष्ट करने वाली है इसका नाम मोक्षदा है इसमें भगवान दामोदर को नैवेद्य धूप पुष्प दीप अगरबत्ती षोडशोपचार पूर्वककिया जाता है। मोक्षदा एकादशी के दिन अन्य एकादशी की तरह ही व्रत रहा जाता है मोक्षदा एकादशी से 1 दिन पहले यानी दशमी के दिन सात्विक भोजन करना चाहिए तथा सोने से पहले भगवान विष्णु का ध्यान करना चाहिए अगले दिन सुबह स्नान करके पूरे घर में गंगाजल छिड़कना चाहिए इसके बाद भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए पूजा में तुलसी के पत्ते को अवश्य शामिल करना चाहिए मोक्षदा एकादशी के दिन आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ करना चाहिए तथा रात्रि में भगवान विष्णु का भजन कीर्तन करना चाहिए अगले दिन भगवान विष्णु की पूजा करके ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए दक्षिणा देना चाहिए इसके उपरांत परिवार के साथ पारण करना चाहिए
एकादशी के दिन गीता के 11 अध्याय का पाठ करने वाले के पाप कट जाते हैं तथा व्यक्ति मोक्ष का अधिकारी बन जाता है इसी वजह से एकादशी का नाम मोक्षदा एकादशी है एकादशी व्रत करने वाला यदि अपने समस्त पुण्य अपने पूर्वजों को अर्पित कर दे तो उन्हें स्वर्ग प्राप्त होता है अगर नरक की यातनाएं झेल रहे हो । इस एकादशी को गीता जयंती के नाम से भी जाना जाता है इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को मोक्ष प्रदायिनी श्रीमद्भागवत गीता का उपदेश दिया था।
शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति नियमित गीता के ग्यारहवें अध्याय का पाठ करता है उसे भगवान विष्णु के दर्शन का पुण्य प्राप्त होता है ऐसे व्यक्ति की आत्मा मृत्यु के पश्चात परमात्मा के स्वरूप में विलीन हो जाती है अर्थात उसे मोक्ष मिल जाता है
इस विषय पर एक पौराणिक कथा प्रचलित है जिसे सुनने सुनाने मात्र से ही वाजपेई यज्ञ का पुण्य प्राप्त होता है इस व्रत से नर्क में गए माता पिता अन्य परिवार वाले भी स्वर्ग को प्राप्त होते हैं फिर श्री कृष्ण बोले हे युधिष्ठिर आप इस कथा को सावधानी पूर्वक सुने। इस
यह कथा इस प्रकार है हे राजन गोकलपुरी में किसी समय पहले एक बैकनश नामक राजा राज़ करता था वह राजा अपने राज्य का पुत्र के समान पालन करता था उसके राज्य में चारों वेद को जानने वालों कर्म निष्ट ब्राह्मण रहते थे 1 दिन राजा को स्वप्न में आता है उनके पूर्वज नर्क में भयानक यातनाये झेल रहे हैं और बहुत ही दुखी हैं और स्वप्न में ही अपने पुत्र से विनती करते हैं हे पुत्र तुम कोई साधना करके मुझे भयानक यातना से मुक्त करो प्रातः काल जब राजा सो कर उठते हैं तो उनका मन रात के स्वप्न से बहुत ही दुखी था वह यही सोच रहे थे की किस प्रकार से पिताजी को नर्क से बाहर निकाले बहुत विचार करने के बाद भी जब कुछ नहीं सूझा तब उसने अपने राज दरबार में महान विद्वानों महर्षीओं महान ज्योतिषियों को बुलाया और अपने रात के सपने का संपूर्ण वृत्तांत बताया और उनसे कुछ समाधान जानना चाहा और कहा कि मेरे सामर्थ्यवान होने का क्या लाभ जब मेरे पूर्वज ही दुखी हूं उनकी मन की पीड़ा सुनकर सारे ब्राह्मणों ने एक सुर में कहा यहां से कुछ दूरी पर ही पर्वत तक मुनि का आश्रम है वह मुनी भूत भविष्य वर्तमान तीनों कालों के ज्ञाता हैं वह आपको कोई ना कोई समाधान अवश्य बताएंगे । ब्राह्मणों की बातें सुनकर राजा ने मीना क्षण गवाय पर्वत मुनि के आश्रम की तरफ का प्रस्थान किया उनका आश्रम बहुत ही शांत और वेदों को जानने वाले ब्राह्मणों से भरा पड़ा था वहां उपस्थित सभी ब्राह्मण शांत चित्र से अपने पूजा पाठ में लगे हुए थे वहीं कुछ दूरी पर ब्राह्मणों से गिरे हुए बहुत ही तेजवान मानो जैसे दूसरे ब्रह्मा के समान दिखाई पड़ रहे थे राजा ने पर्वत तक मुनिको नमस्कार किया मुनि ने उनको आशीर्वाद देकर उनके परिवार और राज्य के कुशल समाचार पूछे राजा ने कहा आप के आशीर्वाद से राज्य एवं परिवार सभी कुशल पूर्वक है परंतु मुनि मुझे इस समय कुछ मानसिक कष्ट अवश्य हो रहा है उसी के निवारण के लिए मैं आपकी शरण में आया हूं आशा ही नहीं विश्वास है कि आप की दया से मेरे सारे कष्ट दूर हो जाएंगे राजा के ऐसे वचन सुनकर मुनी ध्यान में चले गए कुछ समय के बाद आंखें खोल कर कहने लगे राजन तुम अपने पापी पिता के यातनाओ से दुखी होकर यहां आए हो तुम्हारे पिता ने कामवास एक स्त्री पर अत्याचार किया था पाप के फल स्वरूप व नरक की यातनाएं भोग रहे हैं ऋषि के वचन सुनकर राजा ने कहा भगवान मेरे क्या करने पर वह इस पाप से मुक्त होंगे इसके बाद कुछ विचार करके मुनि ने कहा राजन अगर तुम अगहन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत सपरिवार करें और उसका पुण्य अपने पिता को अर्पण कर दीजिए तो अवश्य ही आपके पिता का उद्धार हो जाएगा राजा वापस आकर प्रीति के कहे अनुसार व्रत करके उसका पुण्य अपने पिता को अर्पण कर दिया फल स्वरूप उनके पिता को नर्क से निकाल के स्वर्ग भेज दिया गया जाते हुए आकाश मार्ग से अपने पुत्र को धन्यवाद और कल्याण होने का आशीर्वाद देते हुए राजा स्वर्ग के लिए चले गए राजन इस मोक्षदा एकादशी का व्रत करने वाले के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और वह मोक्ष पाता है इससे बड़ा मोक्ष देने वाला कोई और दूसरा व्रत नहीं है इस कथा के मात्र सुनने एवं सुनाने से बाजपेई यज्ञ का फल मिलता है।
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